Thursday, November 27, 2008

देह की देहरी के पार

देह की देहरी के पार
निशब्द था वो प्यार
जब
चुटकी भर धूप से तुमने
किया था माथे का श्रृंगार
रात की चादर मे तुमने
टांका था तारो से संसार
चाँद की मद्धिम सी लौ मे तुमने
जला सब कुछ पाया था सार
समय के अधपके धागे से तुमने
बुना था ये दिन चार
असह्य है तेरे स्नेह का ये भार
देह की देहरी के पार.....

Monday, November 3, 2008

गुलजार होने के मायने

हिंसक होते इस समय में गुलजार पर लिखना लोगों को अटपटा लग सकता है| लेकिन अगर हिंसा मानव निर्मित है तो उससे लड़ने का हथियार भी मानव निर्मित ही होगा|कहते है कि शब्द मनुष्य का सबसे बड़ा औजार है...शायद सबसे बड़ा अविष्कार...तो फिर हमारे समय की हर पीड़ा को सह्य बनाने का जिम्मा भी यही उठा सकता है|गुलजार साहब के नगमो में हम शब्द की इसी ताकत को महसूस करते है|इसीलिए गुलजार को सोचना अपने समय से निस्संगता नही बल्कि सम्पृक्ति है...


गुलजार के गीत एक सख्शियत की तरह होते है| हम उन्हें देख सकते है, छू सकते है पहचान सकते है और प्यार कर सकते है|इस सख्शियत की कई खासियते है|सारी खासियते आपस में गूंथी हुई है उनका अलग अलग वजूद नही है पर उनके गूथें जाने पर एक अलहदा वजूद आकार ले लेता है|जैसे भाप जम कर बर्फ हो गया हो ऐसे ही अमूर्त संवेदनाये शब्दों की शक्ल ले लेती है|पर जब आप उन शब्दों की चीर-फार कर के उनके मर्म को पकड़ने की कोशिश करेंगे तो मन में बस भाप का नम एहसास होगा और आँखों में पानी की कुछ बूंदे ...यकीन कीजिये कुछ भी ठोस आपके हाथ नही लगेगा ....

(१)

गुलजार के गीतों की एक बड़ी खूबी है उनकी ऐंद्रिकता|उनके नगमो को आप अपने आंखों से देख सकते है नाक से सूंघ सकते है हाथो से छू सकते है उसके मीठेपन को चख सकते है और सबसे ज्यादा सुन सकते है|पर ये ऐंद्रिकता सामान्य नहीं है आप महसूस करेंगे की आपकी इन्द्रियां कुछ अजीब ही कर रही है|वे आंखों की महकती खूसबू देख रही है, नाम की मिश्री चख रही है है, राजों की महक सूंघ रही है, वादियों की खामोसियाँ सुन रही है...ये सब अटपटा लगता है पर गुलजार के यहाँ यह सब बिल्कुल सामान्य है|एकदम हकीकत|दरअसल गुलजार अपने वजूद और कायनात के बीच की सारी दीवारें गिरा देते है|इसलिए दुनिया उनके लिए देखने समझने की चीज नही रह जाती बल्कि महसूस करने की चीज में तब्दील हो जाती है| इस तादात्म्य में देखने सुनने सूंघने चखने और छूने में कोई फर्क नहीं रह जाता|इन्द्रियां अपनी सीमाओं से आजाद हो जाती है |ऐसा लगता है कि सबने साथ मिलकर एक एहसास को पी लिया हो और फिर बहक कर आपनी हदें भूल गई हो..... आप उनकी मस्ती से वाकिफ होने के लिए एक बार फिर गुलजार के गीतों पर इस नजर से गौर फरमाए...........

(२)
गुलजार के गीतों की दूसरी बड़ी खूबी है साधारणता| गुलजार के गीत एक सामान्य इन्सान की अनुभूतियाँ है |आबोदाना और आशियाने की तलाश करते अजनबी को महज थोडी सी जमीं, थोड़े से आशमान और तिनके के एक आशियाने की दरकार है। उसकी आकांक्षा फुरसत के क्षणों में बस आँगन में लेटने की है|लेकिन भले ही गुलजार के किरदार साधारण है, उनकी अनुभूतियाँ कई मायनो में असाधारण है |सतह पर जीता हुआ आदमी जीवन के गहरे अनुभवों से वंचित ही रह जाता है |पर गुलजार के किरदार जहाँ एक ओर जीवन के गहरे अनुभवों की दंस झेलते दीखते है वही दूसरी ओर उमंग में उनके पाँव जमीं पर भी नहीं पड़ते है |मुख्तसर यह कि गुलजार एक आम इन्सान की खास अनुभूतियों को अपने गले से लगाते है और उसे पूरी शिद्दत से सार्वजनिक करते है|


(३)
गुलजार के गीतों की तीसरी बड़ी खूबी है उनकी जीवंधर्मिता|जिसे छोटी छोटी बातों की यादे बड़ी लगती हो वह जिन्दगी से कभी नाराज नही हो सकता|भले ही जिन्दगी के कुछ मासूम सवाल उसे परेशान करते हो पर आख़िर में वह जिन्दगी को गले लगाये बिना नहीं रह सकता|जीवन जो है, जैसा है प्यारा है|